गीत - संगीत की दुनियाँ में अपना नाम कमाने के लिए यूं तो रोज़ नयी प्रतिभायें आती हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही ऐसी होती हैं जो कि श्रोताओं के दिलों को छू जाती हैं. ऐसी ही एक मधुर आवाज़ हैं सूफी गायिका समरजीत रंधावा की। कानपुर की रहने वाली समरजीत ने बचपन से संगीत सीखा है. इन्होने अखिल भारतीय गन्धर्व महाविद्यालय से संगीत विशारद किया है. इसके अलावा उस्ताद अफज़ल हुसैन खान निज़ामी, रामपुर सहसवान घराना वाले से संगीत की विधिवत शिक्षा ली है और अब समरजीत मुंबई में आयी हैं अपने संगीत कैरियर को आगे बढ़ाने के लिये। उनका पहला एलबम "रूह दी फकीरी " जो कि ज़ी म्यूजिक से आ रहा है। पिछले दिनों समरजीत से विस्तृत बातचीत हुई , पेश हैं कुछ मुख्य अंश ---
क्या आपने फिल्मों में गीतों को गाया है ?
हाँ मैंने ३ फिल्मों में गीतों को गाया हैं जिसमें से एक फिल्म "मैं शाहरुख़ खान बनना चाहता हूँ" रिलीज़ होने वाली है इसमें आइटम नंबर गाया है मैंने। जिंगल्स भी गाये हैं , लोकप्रिय संगीतकार रविन्द्र जैन के साथ भजन में भी काम किया। आई पी एल पंजाब के लिए गाया है ।
सूफी गायकी में आप किस गायक या गायिका से प्रेरित हैं ?
सूफी की तरफ जब झुकते हैं तो हम कविता से इंस्पायर होते हैं किसी गायक से नहीं मेरा ऐसा मानना है । तो मैं बाबा बुल्ले शाह, बाबा गुलाम फ़रीद और नानक साहब , कबीर, रहीम, मीरा को मैं पढ़ती हूँ. जहाँ तक गायकी की बात है तो नुसरत फतेह अली खान का नाम मैं लेना चाहती हूँ मैं उनकी कव्वाली को दोबारा युवाओं में लोकप्रिय करूँ और साथ ही मैं शास्त्रीय संगीत को इस तरह से आम लोगों में पंहुचाना चाहती हूँ जिससे वो संगीत का आनंद भी उठाये और शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा भी मिले।
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